चाणक्य नीति [ हिंदी में ] : ग्यारहवाँ अध्याय | Chanakya Neeti [In Hindi]: eleventh Chapter Chanakya niti



चाणक्य नीति [ हिंदी में ] : ग्यारहवाँ अध्याय | Chanakya Neeti [In Hindi]: eleventh Chapter Chanakya niti 

 1: दान देने का स्वभाव, मधुर वाणी, धैर्य और उचित की पहचान, ये चार बातें अभ्यास से नहीं आती, ये मनुष्य के स्वाभाविक गुण है। ईश्वर के द्वारा ही ये गुण प्राप्त होते है। जो व्यक्ति इन गुणों का उपयोग नहीं करता, वह ईश्वर के द्वारा दिए गए वरदान की उपेक्षा ही करता है और दुर्गुणों को अपनाकर घोर कष्ट भोगता है। - चाणक्य नीति





2: जो अपने स्वर्ग को छोड़कर दूसरे के वर्ग का आश्रय ग्रहण करता है, वह स्वयं ही नष्ट हो जाता है, जैसे राजा अधर्म के द्वारा नष्ट हो जाता है। उसके पाप कर्म उसे नष्ट कर डालते है। - चाणक्य नीति
3: हाथी मोटे शरीर वाला है, परन्तु अंकुश से वश में रहता है। क्या अंकुश हाथी के बराबर है ? दीपक के जलने पर अंधकार नष्ट हो जाता है। क्या अंधकार दीपक बराबर है ? वज्र से बड़े-बड़े पर्वत शिखर टूटकर गिर जाते है। क्या वज्र पर्वतों के समान है ? सत्यता यह है कि जिसका तेज चमकता रहता है, वही बलवान है। मोटेपन से बल का अहसास नहीं होता। - चाणक्य नीति





4: कलियुग के दस हजार वर्ष बीतने पर श्री विष्णु (पालनकर्ता) इस पृथ्वी को छोड़ देते है, उसके आधा बीतने पर गंगा का जल समाप्त हो जाता है और उसके आधा बीतने पर ग्राम के देवता भी पृथ्वी को छोड़ देते है। - चाणक्य नीति






5: घर-गृहस्थी में आसक्त व्यक्ति को विद्या नहीं आती। मांस खाने वाले को दया नहीं आती। धन के लालची को सच बोलना नहीं आता और स्त्री में आसक्त कामुक व्यक्ति में पवित्रता नहीं होती। - चाणक्य नीति
चाणक्य नीति [ हिंदी में ] : ग्यारहवाँ अध्याय | Chanakya Neeti [In Hindi]: eleventh Chapter Chanakya niti 






6: जिस प्रकार नीम के वृक्ष की जड़ को दूध और घी से सीचने के उपरांत भी वह अपनी कड़वाहट छोड़कर मृदुल नहीं हो जाता, ठीक इसी के अनुरूप दुष्ट प्रवृतियों वाले मनुष्यों पर सदुपदेशों का कोई भी असर नहीं होता। - चाणक्य नीति






7: जिस प्रकार शराब वाला पात्र अग्नि में तपाए जाने पर भी शुद्ध नहीं हो सकता, उसी प्रकार जिस मनुष्य के ह्रदय में पाप और कुटिलता भरी होती है, सैकड़ों तीर्थ स्थानो पर स्नान करने से भी ऐसे मनुष्य पवित्र नहीं हो सकते। - चाणक्य नीति





8: इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जो जिसके गुणों के महत्त्व को नहीं जानता, वह सदैव निंदा करता है। जैसे जंगली भीलनी हाथी के गंडस्थल से प्राप्त मोती को छोड़कर गुंजाफल की माला को पहनती है। - चाणक्य नीति





9: जो कोई प्रतिदिन पूरे संवत-भर मौन रहकर भोजन करते है, वे हजारों-करोड़ो युगों तक स्वर्ग में पूजे जाते है। - चाणक्य नीति





10: काम (व्यभिचार), क्रोध (अभीष्ट की प्राप्ति न होने पर आपे से बाहर होना), लालच (धन-प्राप्ति की लालसा), स्वाद (जिह्वा को प्रिय लगने वाले पदार्थो का सेवन), श्रृंगार (सजना-धजना), खेल और अत्यधिक सेवा (दुसरो की चाकरी) आदि दुर्गुण विद्यार्थी के लिए वर्जित है। विद्यार्थी को इन आठों दुर्गुणों का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए। - चाणक्य नीति
चाणक्य नीति [ हिंदी में ] : ग्यारहवाँ अध्याय | Chanakya Neeti [In Hindi]: eleventh Chapter Chanakya niti 







11: बिना जोते हुए स्थान के फल, मूल खाने वाला, अर्थात ईश्वर की कृपा से प्राप्त हर भोजन से संतुष्ट होने वाला, निरन्तर वन से प्रेम रखने वाला और प्रतिदिन श्राद्ध करने वाला ब्राह्मण ऋषि कहलाता है। - चाणक्य नीति






12: जो व्यक्ति एक बार के भोजन से संतुष्ट हो जाता है, छः कर्मो (यज्ञ करना, यज्ञ कराना, पढ़ना, पढ़ाना, दान देना, दान लेना) में लगा रहता है और अपनी स्त्री से ऋतुकाल (मासिक धर्म) के बाद ही प्रसंग करता है, वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है। - चाणक्य नीति





13: जो ब्राह्मण दुनियादारी के कामों में लगा रहता है, पशुओं का पालन करने वाला और व्यापर तथा खेती करता है, वह वैश्य (वणिक) कहलाता है। - चाणक्य नीति






14: लाख आदि, तेल, नील, फूल, शहद, घी, मदिरा (शराब) और मांस आदि का व्यापार करने वाला ब्राह्मण शूद्र कहलाता है। - चाणक्य नीति






15: दूसरे के कार्य में विघ्न डालकर नष्ट करने वाला, घमंडी, स्वार्थी, कपटी, झगड़ालू,ऊपर से कोमल और भीतर से निष्ठुर ब्राह्मण बिलाऊ (नर बिलाव) कहलाता है, अर्थात वह पशु है, नीच है। - चाणक्य नीति






16: बावड़ी, कुआं, तालाब, बगीचा और देव मंदिर को निर्भय होकर तोड़ने वाला ब्राह्मण म्लेच्छ (नीच) कहलाता है। - चाणक्य नीति






17: देवता का धन, गुरु का धन, दूसरे की स्त्री के साथ प्रसंग (संभोग) करने वाला और सभी जीवों में निर्वाह करने अर्थात सबका अन्न खाने वाला ब्राह्मण चांडाल कहलाता है। - चाणक्य नीति






18: भाग्यशाली पुण्यात्मा लोगो को खाद्य-सामग्री और धन-धान्य आदि का संग्रह न करके, उसे अच्छी प्रकार से दान करना चाहिए। दान देने से कर्ण, दैत्यराज बलि और विक्रमादित्य जैसे राजाओ की कीर्ति आज तक बनी हुई है। इसके विपरीत शहद का संग्रह करने वाली मधुमक्खियां जब अपने द्वारा संग्रहित मधु को किसी कारण से नष्ट हुआ देखती है तो वे अपने पैरो को रगड़ते हुए कहती है कि हमने न तो अपने मधु का उपयोग किया और न किसी को दिया ही। - चाणक्य नीति

चाणक्य नीति [ हिंदी में ] : ग्यारहवाँ अध्याय | Chanakya Neeti [In Hindi]: eleventh Chapter Chanakya niti 







19: संसार के उद्धार के लिए जिन लोगो ने विधिपूर्वक परमेश्वर का ध्यान नहीं किया, स्वर्ग में समर्थ धर्म का उपार्जन नहीं किया, स्वप्न में भी सुन्दर युवती के कठोर स्तनों और जंघाओं के आलिंगन का भोग नहीं किया, ऐसे व्यक्ति का जन्म माता के यौवन रूपी वन को काटने वाली कुल्हाड़ी के समान है। - चाणक्य नीति





20: आचार्य चाणक्य का मानना है कि कुलटा (चरित्रहीन) स्त्रियों का प्रेम एकान्तिक न होकर बहुजनीय होता है। उनका कहना है की कुलटा स्त्रियां पराए व्यक्ति से बातचीत करती है, कटाक्षपूर्वक देखती है और अपने ह्रदय में पर पुरुष का चिंतन करती है, इस प्रकार चरित्रहीन स्त्रियों का प्रेम अनेक से होता है। - चाणक्य नीति





21: जो मुर्ख व्यक्ति माया के मोह में वशीभूत होकर यह सोचता है कि अमुक स्त्री उस पर आसक्त है, वह उस स्त्री के वश में होकर खेल की चिड़िया की भांति इधर-से-उधर नाचता फिरता है। - चाणक्य नीति






22: आचार्य चाणक्य का कहना है कि इस संसार में कोई भाग्यशाली व्यक्ति ही मोह-माया से छूटकर मोक्ष प्राप्त करता है। उनका कहना है —–‘धन-वैभव को प्राप्त करके ऐसा कौन है जो इस संसार में अहंकारी न हुआ हो, ऐसा कौनसा व्यभिचारी है, जिसके पापो को परमात्मा ने नष्ट न कर दिया हो, इस पृथ्वी पर ऐसा कौन धीर पुरुष है, जिसका मन स्त्रियों के प्रति व्याकुल न हुआ हो, ऐसा कौन पुरुष है, जिसे मृत्यु ने न दबोचा हो, ऐसा कौन सा भिखारी है जिसे बड़प्पन मिला हो, ऐसा कौनसा दुष्ट है जो अपने सम्पूर्ण दुर्गुणों के साथ इस संसार से कल्याण-पथ पर अग्रसर हुआ हो।’ - चाणक्य नीति






23: जो मुर्ख व्यक्ति माया के मोह में वशीभूत होकर यह सोचता है कि अमुक स्त्री उस पर आसक्त है, वह उस स्त्री के वश में होकर खेल की चिड़िया की भांति इधर-से-उधर नाचता फिरता है। - चाणक्य नीति






24: आचार्य चाणक्य का कहना है कि इस संसार में कोई भाग्यशाली व्यक्ति ही मोह-माया से छूटकर मोक्ष प्राप्त करता है। उनका कहना है —–‘धन-वैभव को प्राप्त करके ऐसा कौन है जो इस संसार में अहंकारी न हुआ हो, ऐसा कौनसा व्यभिचारी है, जिसके पापो को परमात्मा ने नष्ट न कर दिया हो, इस पृथ्वी पर ऐसा कौन धीर पुरुष है, जिसका मन स्त्रियों के प्रति व्याकुल न हुआ हो, ऐसा कौन पुरुष है, जिसे मृत्यु ने न दबोचा हो, ऐसा कौन सा भिखारी है जिसे बड़प्पन मिला हो, ऐसा कौनसा दुष्ट है जो अपने सम्पूर्ण दुर्गुणों के साथ इस संसार से कल्याण-पथ पर अग्रसर हुआ हो।’ - चाणक्य नीति






25: स्वर्ण मृग न तो ब्रह्मा ने रचा था और न किसी और ने उसे बनाया था, न पहले कभी देखा गया था, न कभी सुना गया था, तब श्री राम की उसे पाने (मारीच का मायावी रूप कंचन मृग) की इच्छा हुई, अर्थात सीता के कहने पर वे उसे पाने के लिए दौड़ पड़े। किसी ने ठीक ही कहा है ——‘विनाश काले विपरीत बुद्धि।’ जब विनाश काल आता है, तब बुद्धि नष्ट हो जाती है। - चाणक्य नीति

एक टिप्पणी भेजें

🙏🙏🙏
आप का अमूल्य सुझाव देने के लिए धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏🙏 आप को ये पोस्ट कैसी लगी है ❤️

और नया पुराने