चाणक्य नीति [ हिंदी में ] : अध्याय तेरहवा Thirteenth | Chanakya Neeti [In Hindi]: t Chapter Chanakya niti





चाणक्य नीति [ हिंदी में ] :  अध्याय तेरहवा Thirteenth | Chanakya Neeti [In Hindi]: t Chapter  Chanakya niti 
1: उत्तम कर्म करते हुए एक पल का जीवन भी श्रेष्ठ है, परन्तु दोनों लोकों (लोक-परलोक) में दुष्कर्म करते हुए कल्प भर के जीवन (हजारों वर्षो का जीना) भी श्रेष्ठ नहीं है। - चाणक्य नीति





2: बीते हुए का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य में जो कुछ होने वाला है, उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। आए हुए समय को देखकर ही विद्वान लोग किसी कार्य में लगते है। - चाणक्य नीति






3: उत्तम स्वभाव से ही देवता, सज्जन और पिता संतुष्ट होते है। बंधु-बांधव खान-पान से और श्रेष्ठ वार्तालाप से पंडित अर्थात विद्वान प्रसन्न होते है। मनुष्य को अपने मृदुल स्वभाव को बनाए रखना चाहिए। - चाणक्य नीति






4: अहो ! आश्चर्य है कि बड़ो के स्वभाव विचित्र होते है, वे लक्ष्मी को तृण के समान समझते है और उसके प्राप्त होने पर, उसके भार से और भी अधिक नम्र हो जाते है। - चाणक्य नीति







5: जिसे किसी से लगाव है, वह उतना ही भयभीत होता है। लगाव दुःख का कारण है। दुःखो की जड़ लगाव है। अतः लगाव को छोड़कर सुख से रहना सीखो। - चाणक्य नीति
  





6: भविष्य में आने वाली संभावित विपत्ति और वर्तमान में उपस्थित विपत्ति पर जो तत्काल विचार करके उसका समाधान खोज लेते है, वे सदा सुखी रहते है। इसके अलावा जो ऐसा सोचते रहते है कि ‘यह होगा, वैसा होगा तथा जो होगा, देखा जाएगा ‘ और कुछ उपाय नहीं करते, वे शीघ्र ही नष्ट हो जाते है। - चाणक्य नीति






7: जैसा राजा होता है, उसकी प्रजा भी वैसी ही होती है। धर्मात्मा राजा के राज्य की प्रजा धर्मात्मा, पापी के राज्य की पापी और मध्यम वर्गीय राजा के राज्य की प्रजा मध्यम अर्थात राजा का अनुसरण करने वाली होती है। - चाणक्य नीति






8: धर्म से विमुख व्यक्ति जीवित भी मृतक के समान है, परन्तु धर्म का आचरण करने वाला व्यक्ति चिरंजीवी होता है। - चाणक्य नीति






9: धर्म, धन, काम, मोक्ष इनमे से जिसने एक को भी नहीं पाया, उसका जीवन व्यर्थ है। - चाणक्य नीति







10: नीच मनुष्य दुसरो की यशस्वी अग्नि की तेजी से जलते है और उस स्थान पर (उस यश को पाने के स्थान पर) न पहुंचने के कारण उनकी निंदा करते है। - चाणक्य नीति
चाणक्य नीति [ हिंदी में ] : अध्याय तेरहवा Thirteenth | Chanakya Neeti [In Hindi]: t Chapter Chanakya niti 







11: मन को विषयहीन अर्थात माया-मोह से मुक्त करके ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है क्योंकि मन में विषय-वासनाओं के आवागमन के कारण ही मनुष्य माया-मोह के जाल में आसक्त रहता है। अतः मोक्ष (जीवन-मरण) से छुटकारा पाने के लिए मन का विकाररहित होना आवश्यक है। - चाणक्य नीति







12: परम तत्वज्ञान प्राप्त होने पर जब मनुष्य देह के अभिमान को छोड़ देता है अर्थात जब उसे आत्मा-परमात्मा की नित्यता और शरीर की क्षणभंगुरता का ज्ञान हो जाता है तो वह इस शरीर के मोह को छोड़ देता है। तदुपरांत उसका मन जहां-जहां भी जाता है, वहां-वहां उसे सिद्ध पुरुषों की समाधियों की अनुभूति होती है। - चाणक्य नीति







13: मन की इच्छा के अनुसार सारे सुख किसको मिलते है ? किसी को नहीं मिलते। इससे यह सिद्ध होता है की ‘दैव’ के ही बस में सब कुछ है। अतः संतोष का ही आश्रय लेना चाहिए। संतोष सबसे बड़ा धन है। सुख और दुःख में उसे समरस रहना चाहिए। कहा भी है ——‘जाहि विधि राखे राम ताहि विध रहिये। ‘ - चाणक्य नीति







14: जैसे हजारो गायों के मध्य भी बछड़ा अपनी ही माता के पास आता है,उसी प्रकार किए गए कर्म कर्ता के पीछे-पीछे जाते है। - चाणक्य नीति





15: अव्यवस्थित कार्य करने वाले को न तो समाज में और न वन में सुख प्राप्त होता है क्योंकि समाज में लोग उसे भला-बुरा कहकर जलते है और निर्जन वन में अकेला होने के कारण वह दुःखी होता है। - चाणक्य नीति





16: जिस प्रकार फावड़े अथवा कुदाल से खोदकर व्यक्ति धरती के नीचे से जल प्राप्त कर लेता है, उसी प्रकार एक शिष्य गुरु की मन से सेवा करके विद्या प्राप्त कर लेता है। - चाणक्य नीति







17: फल कर्म के अधीन है, बुद्धि कर्म के अनुसार होती है, तब भी बुद्धिमान लोग और महान लोग सोच-विचार करके ही कोई कार्य करते है। - चाणक्य नीति





18: अपनी स्त्री, भोजन और धन, इन तीनों में संतोष करना चाहिए और विद्या पढ़ने, जप करने और दान देने, इन तीनो में संतोष नहीं करना चाहिए।- चाणक्य नीति






19: जिस गुरु ने एक भी अक्षर पढ़ाया हो, उस गुरु को जो प्रणाम नहीं करता अर्थात उसका सम्मान नहीं करता, ऐसा व्यक्ति कुत्ते की सैकड़ो योनियों को भुगतने के उपरांत चांडाल योनि में जन्म लेता है। - चाणक्य नीति







20: इस पृथ्वी पर तीन ही रत्न है —–जल, अन्न, और मधुर वचन ! बुद्धिमान व्यक्ति इनकी समझ रखता है, परन्तु मूर्ख लोग पत्थर के टुकड़ो को ही रत्न कहते है। - चाणक्य नीति

चाणक्य नीति [ हिंदी में ] : अध्याय तेरहवा Thirteenth | Chanakya Neeti [In Hindi]: t Chapter Chanakya niti 









21: मनुष्य के अधर्म रूपी वृक्ष (अर्थात शरीर) के फल —–दरिद्रता, रोग, दुःख, बंधन (मोह-माया), व्यसन आदि है। - चाणक्य नीति







22: धन, मित्र, स्त्री, पृथ्वी, ये बार-बार प्राप्त होते है, परन्तु मनुष्य का शरीर बार-बार नहीं मिलता है। - चाणक्य नीति






23: यह एक निश्चित तथ्य है कि बहुत से लोगो का समूह ही शत्रु पर विजय प्राप्त करता है, जैसे वर्षा की धार को धारण करने वाले मेघों के जल को तिनको के द्वारा (तिनके का बना छप्पर) ही रोका जा सकता है। - चाणक्य नीति







24: पानी में तेल, दुष्ट व्यक्तियों में गोपनीय बातें, उत्तम पात्र को दिया गया दान और बुद्धिमान के पास शास्त्र-ज्ञान यदि थोड़ा भी हो तो स्वयं वह अपनी शक्ति से विस्तार पा जाता है। - चाणक्य नीति







25: जिससे अपना हित साधना हो, उससे सदैव प्रिय बोलना चाहिए जैसे मृग को मारने के लिए बहेलिया मीठे स्वर में गीत गाता है। - चाणक्य नीति






26: जो जिसके मन में है, वह उससे दूर रहकर भी दूर नहीं है और जो जिसके ह्रदय में नहीं है, वह समीप रहते हुए भी दूर है। - चाणक्य नीति







27: दान, तपस्या, वीरता, ज्ञान, नम्रता, किसी में ऐसी विशेषता को देखकर आश्चर्य नहीं करना चाहिए क्योंकि इस दुनिया में ऐसे अनेक रत्न भरे पड़े है। - चाणक्य नीति







28: चिंता करने वाले व्यक्ति के मन में चिंता उत्पन्न होने के बाद की जो स्थिति होती है अर्थात उसकी जैसी बुद्धि हो जाती है, वैसी बुद्धि यदि पहले से ही रहे तो भला किसका भाग्योदय नहीं होगा। - चाणक्य नीति






29: धार्मिक कथा सुनने पर, श्मशान में चिता को जलते देखकर, रोगी को कष्ट में पड़े देखकर जिस प्रकार वैराग्य भाव उत्पन्न होता है, वह यदि स्थिर रहे तो यह सांसारिक मोह-माया व्यर्थ लगने लगे, परन्तु अस्थिर मन श्मशान से लौटने पर फिर से मोह-माया में फंस जाता है। - चाणक्य नीति





एक टिप्पणी भेजें

🙏🙏🙏
आप का अमूल्य सुझाव देने के लिए धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏🙏 आप को ये पोस्ट कैसी लगी है ❤️

और नया पुराने