krishna anmol vachan image श्री कृष्ण के अनमोल विचार

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1.श्री कृष्ण के अनमोल विचार

सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में है ना ही कहीं और | 

क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है, जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है. जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है| 

मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है; और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है| 

ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है| 

जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है| 

अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है| 

आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर दो, अनुशाषित रहो उठो| 

मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है, जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है | 

नर्क के तीन द्वार हैं: वासना, क्रोध और लालच

इस जीवन में ना कुछ खोता है ना व्यर्थ होता है | 

मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है | 

लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे. सम्मानित व्यक्ति के लिए, अपमान मृत्यु से भी बदतर है | 

प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर, और सोना सभी समान हैं | 

निर्माण केवल पहले से मौजूद चीजों का प्रक्षेपण है | 

व्यक्ति जो चाहे बन सकता है यदी वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे | 

उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है, ना कभी था ना कभी होगा.जो वास्तविक है, वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता | 

ज्ञानी व्यक्ति को कर्म के प्रतिफल की अपेक्षा कर रहे अज्ञानी व्यक्ति के दीमाग को अस्थिर नहीं करना चाहिए | 

हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है | 

जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना. इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो | 

अप्राकृतिक कर्म बहुत तनाव पैदा करता है | 

सभी अच्छे काम छोड़ कर बस भगवान में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ. मैं तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा.. शोक मत करो | 

किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े | 

मैं उन्हें ज्ञान देता हूँ जो सदा मुझसे जुड़े रहते हैं और जो मुझसे प्रेम करते हैं | 

मैं सभी प्राणियों को सामान रूप से देखता हूँ; ना कोई मुझे कम प्रिय है ना अधिक. लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूँ | 

प्रबुद्ध व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं करता | 

मेरी कृपा से कोई सभी कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी बस मेरी शरण में आकर अनंत अविनाशी निवास को प्राप्त करता है | 

हे अर्जुन, केवल भाग्यशाली योद्धा ही ऐसा युद्ध लड़ने का अवसर पाते हैं जो स्वर्ग के द्वार के सामान है | 

भगवान प्रत्येक वस्तु में है और सबके ऊपर भी | 

बुद्धिमान व्यक्ति कामुक सुख आनंद नहीं लेता | 

आपके सार्वलौकिक रूप का मुझे न प्रारंभ न मध्य न अंत दिखाई दे रहा है | 

जो कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य देखता है वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है | 

मैं धरती की मधुर सुगंध हूँ, मैं अग्नि की ऊष्मा हूँ, सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम हूँ | 

तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नहीं हैं, और फिर भी ज्ञान की बाते करते हो | बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं | 

कभी ऐसा समय नहीं था जब मैं, तुम,या ये राजा-महाराजा अस्तित्व में नहीं थे, ना ही भविष्य में कभी ऐसा होगा कि हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाये | 

कर्म मुझे बांधता नहीं, क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा नहीं | 

हे अर्जुन ! हम दोनों ने कई जन्म लिए हैं. मुझे याद हैं, लेकिन तुम्हे नहीं | 

वह जो वास्तविकता में मेरे उत्कृष्ट जन्म और गतिविधियों को समझता है, वह शरीर त्यागने के बाद पुनः जन्म नहीं लेता और मेरे धाम को प्राप्त होता है | 

अपने परम भक्तों, जो हमेशा मेरा स्मरण या एक-चित्त मन से मेरा पूजन करते हैं, मैं व्यक्तिगत रूप से उनके कल्याण का उत्तरदायित्व लेता हूँ | 

कर्म योग वास्तव में एक परम रहस्य है | 

कर्म उसे नहीं बांधता जिसने काम का त्याग कर दिया है | 

बुद्धिमान व्यक्ति को समाज कल्याण के लिए बिना आसक्ति के काम करना चाहिए | 

जो व्यक्ति आध्यात्मिक जागरूकता के शिखर तक पहुँच चुके हैं , उनका मार्ग है निःस्वार्थ कर्म, जो भगवान् के साथ संयोजित हो चुके हैं उनका मार्ग है : स्थिरता और शांति | 

यद्द्यापी मैं इस तंत्र का रचयिता हूँ, लेकिन सभी को यह ज्ञात होना चाहिए कि मैं कुछ नहीं करता और मैं अनंत हूँ | 

जब वे अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते हैं | 

वह जो सभी इच्छाएं त्याग देता है और “मैं ” और “मेरा ” की लालसा और भावना से मुक्त हो जाता है उसे शांती प्राप्त होती है | 

मेरे लिए ना कोई घृणित है ना प्रिय.किन्तु जो व्यक्ति भक्ति के साथ मेरी पूजा करते हैं , वो मेरे साथ हैं और मैं भी उनके साथ हूँ | 

जो इस लोक में अपने काम की सफलता की कामना रखते हैं वे देवताओं का पूजन करें | 

मैं ऊष्मा देता हूँ, मैं वर्षा करता हूँ और रोकता भी हूँ, मैं अमरत्व भी हूँ और मृत्यु भी | 

बुरे कर्म करने वाले, सबसे नीच व्यक्ति जो राक्षसी प्रवित्तियों से जुड़े हुए हैं, और जिनकी बुद्धि माया ने हर ली है वो मेरी पूजा या मुझे पाने का प्रयास नहीं करते | 

जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है, मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ कर देता हूँ | 

हे अर्जुन !, मैं भूत, वर्तमान और भविष्य के सभी प्राणियों को जानता हूँ, किन्तु वास्तविकता में कोई मुझे नहीं जानता | 

स्वर्ग प्राप्त करने और वहां कई वर्षों तक वास करने के पश्चात एक असफल योगी का पुन: एक पवित्र और समृद्ध कुटुंब में जन्म होता है | 

केवल मन ही किसी का मित्र और शत्रु होता है | 

मैं सभी प्राणियों के ह्रदय में विद्यमान हूँ | 

ऐसा कुछ भी नहीं , चेतन या अचेतन , जो मेरे बिना अस्तित्व में रह सकता हो | 

वह जो मृत्यु के समय मुझे स्मरण करते हुए अपना शरीर त्यागता है, वह मेरे धाम को प्राप्त होता है, इसमें कोई शंशय नहीं है | 

वह जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, मुझे प्राप्त किये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं | 


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*"||श्रीकृष्ण की माया||"*
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       सुदामा ने एक बार श्रीकृष्ण ने पूछा : कान्हा, मैं आपकी माया के दर्शन करना चाहता हूं.. ये कैसे हो सकती है..??”
       श्री कृष्ण ने टालना चाहा, लेकिन सुदामा की जिद पर श्री कृष्ण ने कहा: “अच्छा, कभी वक्त आएगा तो बताऊंगा..!!”
          और फिर एक दिन कहने लगे… सुदामा, आओ, गोमती में स्नान करने चलें| दोनों गोमती के तट पर गए| वस्त्र उतारे| दोनों नदी में उतरे… श्रीकृष्ण स्नान करके तट पर लौट आए| पीतांबर पहनने लगे…!!
      सुदामा ने देखा, कृष्ण तो तट पर चला गया है, मैं एक डुबकी और लगा लेता हूं… और जैसे ही सुदामा ने डुबकी लगाई… भगवान ने उसे अपनी माया का दर्शन कर दिया|
     सुदामा को लगा, गोमती में बाढ़ आ गई है, वह बहे जा रहे हैं, सुदामा जैसे-तैसे तक घाट के किनारे रुके| घाट पर चढ़े| घूमनेलगे| घूमते-घूमते गांव के पास आए| वहां एक हथिनी ने उनके गले में फूल माला पहनाई| सुदामा हैरान हुए| लोग इकट्ठे हो गए|
लोगों ने कहा, “हमारे देश के राजा की मृत्यु हो गई है|
      हमारा नियम है, राजा की मृत्यु के बाद हथिनी, जिस भी व्यक्ति के गले में माला पहना दे, वही हमारा राजा होता है| हथिनी ने आपके गले में माला पहनाई है., इसलिए अब आप हमारे राजा हैं|” सुदामा हैरान हुआ| राजा बन गया|
       एक राजकन्या के साथ उसका विवाह भी हो गया| दो पुत्र भी पैदा हो गए| एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार पड़ गई… आखिर मर गई…!!
सुदामा दुख से रोने लगा… उसकी पत्नी जो मर गई थी, जिसे वह बहुत चाहता था, सुंदर थी, सुशील थी… लोग इकट्ठे हो गए…!!
    उन्होंने सुदामा को कहा, आप रोएं नहीं, आप हमारे राजा हैं… लेकिन रानी जहां गई है, वहीं आप को भी जाना है, यह मायापुरी का नियम है| आपकी पत्नी को चिता में अग्नि दी जाएगी… आपको भी अपनी पत्नी की चिता में प्रवेश करना होगा… आपको भी अपनी पत्नी के साथ जाना होगा| 
ये सुना तो सुदामा की सांस रुक गई… हाथ-पांव फुल गए… अब मुझे भी मरना होगा… मेरी पत्नी की मौत हुई है, मेरी तो नहीं… भला मैं क्यों मरूं… यह कैसा नियम है? सुदामा अपनी पत्नी की मृत्यु को भूल गया… उसका रोना भी बंद हो गया| अब वह स्वयं की चिंता में डूब गया… कहा भी, ‘भई, मैं तो मायापुरी का वासी नहीं हूं… मुझ पर आपकी नगरी का कानून लागू नहीं होता… मुझे क्यों जलना होगा|’ लोग नहीं माने, कहा, ‘अपनी पत्नी के साथ आपको भी चिता में जलना होगा… मरना होगा… यह यहां का नियम है|’
        आखिर सुदामा ने कहा, ‘अच्छा भई, चिता में जलने से पहले मुझे
स्नान तो कर लेने दो…’ लोग माने नहीं… फिर उन्होंने हथियारबंद लोगों की ड्यूटी लगा दी… सुदामा को स्नान करने दो… देखना कहीं भाग न जाए…
रह-रह कर सुदामा रो उठता| सुदामा इतना डर गया कि उसके हाथ-पैर कांपने लगे… वह नदी में उतरा… डुबकी लगाई और फिर जैसे ही बाहर निकला… उसने देखा, मायानगरी कहीं भी नहीं, किनारे पर तो कृष्ण अभी अपना पीतांबर ही पहन रहे थे… और वह एक दुनिया घूम आया है| मौत के मुंह से बचकर निकला है…सुदामा नदी से बाहर आया… सुदामा रोए जा रहा था|
      श्रीकृष्ण हैरान हुए… सबकुछ जानते थे… फिर भी अनजान बनते हुए पूछा, “सुदामा तुम रो क्यों रो रहे हो..??”सुदामा ने कहा : “कृष्ण मैंने जो देखा है, वह सच था या यह जो मैं देख रहा हूं|”
श्रीकृष्ण मुस्कराए, कहा, “जो देखा, भोगा वह सच नहीं था| भ्रम था… स्वप्न था… माया थी मेरी और जो तुम अब मुझे देख रहे हो… यही सच है…!!
        मैं ही सच हूं… मेरे से भिन्न, जो भी है, वह मेरी माया ही है और जो मुझे ही सर्वत्र देखता है, महसूस करता है.. उसे मेरी माया स्पर्श नहीं करती..!!
        माया स्वयं का विस्मरण है…माया अज्ञान है, माया परमात्मा से भिन्न… माया नर्तकी है… नाचती है… नचाती है… लेकिन जो श्रीकृष्ण से जुड़ा है, वह नाचता नहीं.. भ्रमित नहीं होता… माया से निर्लेप रहता है, वह जान जाता है, सुदामा भी जान गया था… जो जान गया वह श्रीकृष्ण से अलग कैसे रह सकता है..!!
*||*
             *"भावार्थ..!!"*
यह संसार केवल एक माया है.. अगर इस जगत में कुछ सच है.. तो वो है.. केवल और केवल ~
*'प्रभु श्री कृष्णा  और प्रभु का अविरल नाम जाप..!!'*
*"जय श्री कृष्ण"                               "राधे-राधे"*






जब बहुत परेशान हों तब श्रीकृष्ण की यह 9 बातें आपका दुख दूर कर देंगी, पवित्र गीता की यह हैं सबसे महत्वपूर्ण जरूरी बातें 


हमारे बड़े बुजुर्ग का हमेशा कहा करते हैं कि जब जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है तब-तब श्री कृष्ण हर युग में अपना एक नया रूप धारण करते हैं ताकि वह अधर्म को नष्ट कर और धर्म की रक्षा कर सकें. यह माना चाहता है कि हमारे भगवत गीता में जीवन की हर बात कही गई है. इस ग्रंथ में श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन को उपदेश देते हैं कि वह महाभारत का युद्ध कैसे लड़ सके जिससे उनकी जीत हो. 

इसलिए यह कहा जाता है कि अगर हमें भी अपने जीवन में सफलता पानी है तो हमें भगवत गीता जरूर पढ़नी चाहिए. भगवत गीता में कुछ ऐसी बातें लिखी गई है जो हमें सफलता की ओर ले जाता है 


i) मानव शरीर एक कपड़े का टुकड़ा है 

गीता के श्लोक में श्रीकृष्ण ने मानव के शरीर को एक कपड़े का टुकड़ा बोला है जहां उन्होंने यह दर्शाते हुए कहा है कि ऐसा कपड़ा जो आत्मा हर जन्म में बदलती है. इसका मतलब यह है कि मानव शरीर का आत्मा अस्थाई वस्त्र है. अर्थार्थ हमें मानव की पहचान उसके शरीर से नहीं उसके मन से उसकी आत्मा से करनी चाहिए. 


ii) क्रोध भ्रम की निशानी है 

यह कहा जाता है कि क्रोध एक सामान्य भावना है जो हर किसी इंसान के अंदर रब बसता है लेकिन एक रोचक बहुत ही नुकसान ताई है क्योंकि यह कहीं ना कहीं मानव के अंदर एक भ्रम पैदा करता है. जहां मनुष्य अच्छे और बुरे की पहचान करना चाहता है इसलिए जरूरी है कि मनुष्य क्रोध की राह से दूर होकर शांति की राह को अपनाएं. 


iii) जीवन का संतुलन बहुत जरूरी है 

यह तो हम सभी जानते हैं कि किसी भी चीज का अति हो जाना काफी घातक होता है चाहे वह फिर रिश्तो की मिठास हो या उनकी कड़वाहट खुशी हो या गम. हर तरीके से हमें अपने जीवन का संतुलन बनाकर रखना चाहिए. 


iv) स्वार्थी होने से बचे 

अगर जीवन में सफलता का पड़ाव चुनना है तो हमें स्वार्थी होने से बचना होगा क्योंकि स्वार्थी एक ऐसा स्वभाव है कि जो हमें अन्य लोगों से दूर कर देता है. सही माने मायने में बोला जाए तो यह उस आईने में पड़े धूल की तरह है जो हमें अपना चेहरा देखने से रोकता है. इसलिए अगर जीवन में खुशियां पानी है तो हमें निस्वार्थ भाव से हर काम करना पड़ेगा. 


v) ईश्वर हमेशा हमारे साथ है 

यह माना जाता है कि जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान होते हैं अर्थात भगवान हर मनुष्य के साथ होता है उसके अच्छे कर्मों के साथ भी और बुरे कर्मों के साथ भी. बस फर्क है कि जब भी मनुष्य सत्य की राह को अपनाता है तब उसके जीवन में एक ऐसा बदलते दौर आता है जहां वह ना भविष्य की चिंता करता है और ना ही अतीत की. 


vi) कर्तव्यो से मुंह मोड़े 

यह बहुत ही अहम बात कही गई है गीता में कि कभी भी हमें अपने कर्मों को करने से पीछे नहीं हटना चाहिए. यह बात हमें हमेशा सिखाई गई है कि हमें अपना कर्म करते रहना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि हमें अपने कर्म के अनुसार ही फल मिलता है. 


vii) इच्छाओं पर नियंत्रण रखें 

यह माना जाता है कि मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या उसकी इच्छाओं से शुरू होता है. जिससे उसकी इच्छाएं बढ़ने लगती है वैसे-वैसे मनुष्य के जीवन में कठिनता आने लगती है. इसलिए जरूरी है कि हम अपने इच्छाओं के ऊपर काबू रखें. 


viii) शक ना करें 

संदेह हर मजबूत से मजबूत रिश्ते को नष्ट कर देता है. जिससे यह मनुष्य का दुख का कारण बन जाती है. इसलिए जीवन में अगर रिश्ते को बचाना हो या फिर जीवन में एक सफल रिश्ता बनाना हो तो अपने अंदर सब की भावना ना रखें. 


iX) मृत्यु से ना डरे 

हमारे जीवन का सबसे अहम सत्य यह है कि जो इंसान इस धरती पर आता है वह कभी ना कभी धरती की मिट्टी में समा जाता है. इसलिए हमें कभी भी मृत्यु से नहीं डरना चाहिए क्योंकि मृत्यु के डर से हम अपने वर्तमान के खुशियों मैं शामिल नहीं हो पाते हैं. इसलिए जरूरत है कि उस सच्चाई को अपनाना और अपनी खुशियों का आनंद उठाना. 

यही थी भगवत गीता की कुछ अनकही बातें जो सामान्य इंसान को सफलता की राह पर पहुंचाने में मदद करता है और उनकी हर मुश्किलों का सामना करने का तर्क देता है. 

इसलिए जीवन में किसी भी प्रकार की कठिनाइयां हो या फिर राह में कितने भी बाधक हो हमें अपने जीवन की राह को सही मायने में चुनकर उसे सफल बनाने की कोशिश करनी चाहिए. 

जब बहुत परेशान हों तब श्रीकृष्ण की यह 9 बातें आपका दुख दूर कर देंगी, पवित्र गीता की यह हैं सबसे महत्वपूर्ण जरूरी बातें 

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1 टिप्पणियाँ

🙏🙏🙏
आप का अमूल्य सुझाव देने के लिए धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏🙏 आप को ये पोस्ट कैसी लगी है ❤️

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